एक अफवाह और सब ख़तम
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बुज़ुर्गों ने कहा था कि सुनी सुनाई बात पर यकीन ना करो इस से बड़ा नुक्सान हो सकता है | लो हो गया बड़ा नुक्सान ! जापान के पूर्ब प्रधानमंत्री की हत्या बस इस लिए कर दी गयी कि हत्यारे ने ये अफवाह सुनी थी कि शिंज़ो आबे किसी धार्मिक समूह से जुड़े थे जिस से उसको नफरत थी हालाँकि ना तो उसने इस बात की पुष्टि की और ना ही रिपोर्ट्स में उस समूह का कोई जिक्र आया है | बस अफवाहों पर शिंज़ो आबे के हत्यारे तेत्सुया यामागामी ने भरोसा किया और शिंज़ो आबे पर गोली चला दी जिससे उनकी मौत हो गयी | अफ़वाह ! एक ऐसा शब्द जिसका विश्लेषण करना बहुत मुश्किल है ये वैसा ही है जैसे बात एक जगह से दूसरी जगह पर पहुँचते-पहुँचते मिर्च मसालों से भर जाती है और बात का बतंगड़ बन जाती है | आजकल कल तो अफवाहों की भरमार है, यही कारण है जो भारत में इतनी साम्प्रदायिक घटनाएं हो रही हैं | हमारे पास एक ऐसा डिजिटल बम है जिसको हम मोबाइल कहते हैं | जो बनाया गया तो था हमारी सुविधा के लिए मगर शरारती तत्व इसका आजकल बख़ूबी इस्तेमाल कर रहे है अफवाहें फ़ैलाने में, तभी तो हर रोज़ कहीं दंगे, कहीं लड़ाई, कहीं आगज़नी और कहीं मोब लीचिंग होना आम हो गया है | बस एक अफवाह फैलाओं और जलते हुए देखो सारा शहर | फेक वीडियो, फेक फोटो और फेक जानकारी इसका मुख्य कारण है, क्यूंकि लोग बिना किसी जानकारी को वेरीफाई किये इसको सच मान लेते हैं और फिर आगे से आगे ये जानकारी गलत से खतरनाक होती जाती है | पिछले कुछ सालों में अफवाहों का दौर इतना गरम है कि अभी एक के बाद एक अफवाह आग में घी का काम करती है और बात पहुँच जाती है मरने मारने तक, तो क्या यह ज़रूरी नहीं के पहले ये सोच लिया जाए कि हम तक पहुँच रही जानकारी सही है भी या नहीं, उसके बाद ही उस पर कोई तर्क दिया जाए | सरकारें भी इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है परन्तु यह मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया इतनी तेज़ है कि यह अफवाह को पलों में करोड़ों तक पहुंचा देती है जिस को रोक पाना बहुत मुश्किल है | ऐसे में हमें खुद को ही ये समझने की ज़रूरत है कि इन अफवाहों से बचें और अपनों को बचाएँ